श्री गणपति अथर्वशीर्ष और श्री बजरंग बाण

श्री गणेशाय नमः
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः। भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाग्ंसस्तनूभिः। व्यशेम देवहितं यदायुः।१।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।२।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।
नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि। त्वमेव केवलं कर्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि। त्वं साक्षादात्मासि नित्यम्।१।
ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।२।
अव त्वं मां। अव वक्तारं। अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यम्।
अव पश्चात्तात्। अव पुरस्तात्। अवोत्तरात्तात्। अव दक्षिणात्तात्।
अव चोर्ध्वात्तात्। अवाधरात्तात्। सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात्।३।
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः। त्वं आनन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः।
त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।४।
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भू मिरापोऽनलोऽनिलो नभः। त्वं चत्वारि वाक् पदानि।५।
त्वं गुणत्रयातीतः। त्वमवस्थात्रयातीतः।
त्वं देहत्रयातीतः। त्वं कालत्रयातीतः।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम्।
त्वं शक्तित्रयात्मकः। त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम्।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ।६।
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादींस्तदनन्तरम्।
अनुस्वारः परतरः। अर्धेन्दुलसितम्। तारेण ऋद्धम्।
एतत्तव मनुस्वरूपम्। गकारः पूर्वरूपम्।
अकारो मध्यमरूपम्। अनुस्वारश्चान्त्यरूपम्।
बिन्दुरुत्तररूपम्। नादः सन्धानम्। संहिता सन्धिः।
सैषा गणेशविद्या। गणक ऋषिः। निचृद्गायत्रीच्छन्दः।
गणपतिर्देवता। ॐ गं गणपतये नमः।७।
एकदन्ताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।८।
एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैः सुपूजितम्।
भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः।९।
नमो व्रातपतये। नमो गणपतये। नमः प्रमथपतये।
नमस्ते अस्तु लम्बोदरायैकदन्ताय विघ्ननाशिने।
शिवसुताय श्रीवरदमूर्तये नमः।१०।
एतदथर्वशीर्षं योऽधीते स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्वविघ्नैर्न बाधते। स सर्वत्र सुखमेधते।
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।११।
सायमधीते सर्वं च यत्किञ्चित् पापं नश्यति।
प्रातरधीते सर्वं च यत्किञ्चित् पापं नश्यति।
सर्वत्राधीते सर्वत्र विघ्ननाशः भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विन्दति।१२।
इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद् दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।१३।
अनेन गणपतिमभिषिञ्चति स वाग्मी भवति।
चतुर्थ्यामनश्नन् जपति स विद्यावान् भवति।
इदं गणपतिविद्या च।१४।
नमो गणपतये नमः।
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
चौपाई
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥

जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥

आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥

जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥

बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥

अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥

लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥

अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥

जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥

जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥

ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥

जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥

बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥

भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥

इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥

सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥

जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥

पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥

बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥

जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥

जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥

चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥

उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥

ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥

अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥

यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥

पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥

यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥

धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥